क्या कारण है, जो सुरकंडा मंदिर पर हर किसी की जुड़ी है “आस्था”
संवाददाता : भगवान पर किसकी आस्था नहीं होती, सबका मानना है कि भगवान इस धरती पर कई वर्षाें से विराजमान है तथा विराजमान रहेंगें। जब भी हमारे मन के अंदर कोई भी इच्छा होती है तो हम भगवान से अनुरोध करते है कि भगवान आप हमारी यह मनोकामना जरूर पूरी करें। क्या आप जानते है कि यह भगवान आखिर कौन है? असल में यह हमारे भीतर पनप रहा वो विश्वास है जो किसी के अंदर हिम्मत, हौसले अथवा कुछ कर गुरजरने को एक जुट है। असल में वही भगवान, खुदा, अल्लाह, ईशू सब कुछ है। तो इन्हीं सब के बीच आज हम सुरकंडा देवी मदिंर के बारे में जिक्र करेगें। जिसके बारे में आप सभी ने सुना व दर्शन भी जरूर करे होगें।
सुरकंडा देवी मंदिर की मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे दिल से कुछ भी मांगता है तो वह जरूर पूरा होता हैं। तो चलिए जानते है मंदिर की खास बात आखिरकार यह मंदिर इतना ज्यादा क्यो प्रचिलित है।
पंडित ओमप्रकाश सती ने बताया कि सुरकंडा देवी मंदिर के बारे यह मान्यता बेहद प्रचलित है। जिस कारण मंदिर में रोजाना भक्तों का तांता लगा रहता है। उन्होंने बताया कि सिद्धपीठ मां सुरकंडा देवी का मंदिर टिहरी के जौनुपर पट्टी में सुरकुट पर्वत पर स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया। शिवजी के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गईं। वहां सती और भगवान शिव का अपमान किया गया। जिसके बाद माता सती यज्ञ कुंड में कूद गईं।
इसके बाद भगवान शिव रौद्र रूप में आ गए। वह सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश भ्रमण करने लगे। इस दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से ये स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
जाने कहा है अथवा क्यो है प्रचिलित
सुरकंडा देवी मंदिर प्रमुख हिन्दू मंदिर है , जो कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जनपद में जौनुपर के सुरकुट पर्वत पर स्थित है एवम् यह मंदिर धनोल्टी और कानाताल के बीच स्थित है । चंबा- मसूरी रोड पर कद्दूखाल कस्बे से डेढ़ किमी पैदल चढ़ाई चढ़ कर सुरकंडा माता मंदिर पहुंचा जाता है । सुरकंडा देवी मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर बना है । यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है , जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है । सुरकंडा देवी मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है । सुरकंडा देवी मंदिर में देवी काली की प्रतिमा स्थापित है । सुरकंडा देवी के मंदिर का उल्लेख केदारखंड और स्कन्दपुराण में भी मिलता है | सुरकंडा देवी मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है |
सुरकंडा देवी मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है और इस स्थान से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। मंदिर परिसर से सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं । यह एक ऐसा नजारा है जो कि दुर्लभ है | मां सुरकंडा देवी को समर्पित मंदिर के अतिरिक्त भगवान शिव एवं हनुमान को समर्पित मंदिर की स्थापना भी इसी मंदिर परिसर में हुई है । चंबा प्रखंड का जड़धारगांव सुरकंडा देवी का मायका माना जाता है । यहां के लोग विभिन्न अवसरों पर देवी की आराधना करते हैं। मंदिर की समस्त व्यवस्था वही करते हैं। सभी सिध्पीठो में से देवी सुरकंडा का महातम्य सबसे अलग है ।
देवी सुरकंडा सभी कष्टों व दुखों को हरने वाली हैं । नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है । यही कारण है कि सुरकंडा मंदिर में प्रतिवर्ष गंगा दशहरे के मौके पर विशाल मेला लगता है ।