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ऑनलाइन गेमिंग  को लेकर हाईकोर्ट ने क्या कहा, जानें एक क्लिक में

The High Court has directed the Central Government to consider the memorandum urging it to formulate a national policy to protect children from 'addiction to online gaming'. Apart from this, the government has been directed to consider the formation of a committee to monitor both online and offline gaming content. A division bench of Chief Justice DN Patel and Justice Jyoti Singh said that the concerned authority should decide the issue in accordance with the laid down law, rules, regulations and government policies. The division bench gave this direction on a PIL filed by the NGO Distress Management Collective through advocates Robin Raju and Deepa Joseph. This petition is related to the ill effects of online games. Advocate Raju argued before the bench that the youth were suffering from game addiction. These games are so intense that it is leading to suicide, crime spree. Thus this issue needs to be taken seriously. The government has no policy to deal with the situation. In such a situation, the government should be directed to set up a regulatory body. The petition states that these games are also a source of cyber bullying, sexual and financial harassment. He also referred to a recent order of the Madras High Court expressing concern over online gaming, especially online gambling. The Madras High Court had recently suggested the introduction of a law to regulate online gambling. He told the bench that countries like China, where most game developers are based, have also issued stringent directions to regulate the sector. He said that many violent games are affecting the psyche of children. Parents are also unable to control their children, as they have to give phones, gadgets to children due to online classes. The petition states that there are several studies that show the ill effects of online gaming on young children aged six to ten years and adolescents between the ages of 11 and 19. The petition has also emphasized on counseling by schools to get rid of the ill effects of online gaming on children. The petitioner said that to address this issue, there is a need to formulate a national policy to emphasize the role of schools and cyber cells. When asked by the bench, he said that on this issue, the petitioners had given a memorandum to the concerned authority on July 10 itself. The court raised the question that you have not waited even for a month and immediately reached the court? In such a situation, they provide time to the concerned authority to take appropriate decision on the memorandum. More about this source textSource text required for additional translation information

हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को उस ज्ञापन पर विचार करने का निर्देश दिया है जिसमें ‘ऑनलाइन गेमिंग की लत’ से बच्चों की सुरक्षा के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने का आग्रह किया गया है। इसके अलावा सरकार को ऑनलाइन और ऑफलाइन सहित दोनों गेमिंग सामग्री की निगरानी के लिए कमेटी के गठन पर विचार का निर्देश दिया है।

मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि संबंधित अथॉरिटी तय कानून, नियमों, विनियमों और सरकारी नीतियों के अनुसार इस मुद्दे पर फैसला करे। खंडपीठ ने यह निर्देश एनजीओ डिस्ट्रेस मैनेजमेंट कलेक्टिव द्वारा अधिवक्ता रॉबिन राजू और दीपा जोसेफ के माध्यम से दायर एक जनहित याचिका पर दिया है।

यह याचिका ऑनलाइन गेम के दुष्प्रभावों से संबंधित है। अधिवक्ता राजू ने पीठ के समक्ष तर्क दिया कि युवा गेम की लत से पीड़ित हैं। ये खेल इतने तीव्र हैं कि यह आत्महत्या, अपराध के झुकाव की ओर ले जा रहे हैं। इस प्रकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेने की जरूरत है। सरकार के पास स्थिति से निपटने के लिए कोई नीति नहीं है। ऐसे में सरकार को एक नियामक निकाय गठित करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका में कहा गया है कि ये गेम साइबर बुलिंग, यौन और वित्तीय उत्पीड़न का एक स्रोत भी हैं। उन्होंने ऑनलाइन गेम, विशेष रूप से ऑनलाइन जुए पर चिंता व्यक्त करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के हालिया आदेश का भी हवाला दिया। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में ऑनलाइन जुआ को विनियमित करने के लिए एक कानून लाए जाने का सुझाव दिया था।

उन्होंने पीठ को बताया कि चीन जैसे देशों, जहां अधिकांश गेम डेवलपर्स आधारित हैं, ने भी इस क्षेत्र को विनियमित करने के लिए कड़े निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने कहा कई हिंसक खेल बच्चों के मानस को प्रभावित कर रहे हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि ऑनलाइन कक्षाओं के कारण उन्हें बच्चों को फोन, गैजेट देने पड़ते हैं।याचिका में कहा गया है कि ऐसे कई अध्ययन हैं जो छह से दस साल के छोटे बच्चों और 11 से 19 साल के किशारों पर ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभावों को दिखाते हैं। याचिका में बच्चों पर ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभावों से मुक्ति के लिए स्कूलों द्वारा काउंसलिंग किए जाने पर भी जोर दिया गया है। याची ने कहा कि इस मुद्दे को हल करने के लिए स्कूलों व साइबर सेल की भूमिका पर जोर देने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाने की जरूरत है।

पीठ के पूछने पर उन्होंने कहा इस मुद्दे पर याचिकाकर्ताओं ने 10 जुलाई को ही एक ज्ञापन संबंधित अथॉरिटी को दिया था। अदालत ने सवाल उठाया कि आपने एक महीने का भी इंतजार नहीं किया है और तुरंत कोर्ट पहुंच गए? ऐसे में वे संबंधित अथॉरिटी को ज्ञापन पर उचित निर्णय लेने का समय प्रदान करते हैं।

 

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