उत्तराखंडगढ़वाल

Uniyal Is Running The Campaign : बच्चों एवं महिलाओं के मुद्दों को लेकर ‘हम शर्मिंदा हैं’ मुहिम चला रहे उनियाल

Uniyal Is Running The Campaign : सिन्धवाल गांव, डोईवाला । ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओं की कठिनाइयों को देखते हुए सामाजिक मुद्दों के पैरोकार मोहित उनियाल और उनके साथी खेतों से चारा पत्ती का बोझ सिर पर उठाकर कुछ दूर पैदल चले । उनियाल का कहना है कि महिलाएं पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए कई घंटे कठिन मेहनत करके चारा पत्ती इकट्ठा करती हैं । इन महिलाओं के कठिन परिश्रम की ओर ध्यान दिलाने के लिए हमने एक दिन के लिए ही सही, उनके बोझ को महसूस करने की कोशिश की ।

Uniyal Is Running The Campaign : हम पर्वतीय गांवों में बच्चों एवं महिलाओं के मुद्दों को लेकर ‘हम शर्मिंदा

उनियाल के अनुसार, हम पर्वतीय गांवों में बच्चों एवं महिलाओं के मुद्दों को लेकर ‘हम शर्मिंदा हैं’ मुहिम चला रहे हैं । इसके तहत शनिवार सुबह बारिश के बीच सिंधवाल गांव पहुंचकर महिलाओं से बात करके यह जानने की कोशिश की, कि क्या पहाड़ में पशुपालन और कृषि की रीढ़ महिलाओं के कार्य बोझ को कम किया जा सकता है । इसलिए हमने एक दिन के लिए ही सही, मातृशक्ति, हमारी बहनों और माताओं की दिक्क़तों को समझने, महसूस करने के लिए घस्यारी बनने का फैसला लिया ।

Uniyal Is Running The Campaign : महिलाओं से बात की, जो सुबह घर के जरूरी कामकाज निपटाती

हमारे साथ डुगडुगी पाठशाला के संस्थापक राजेश पांडे, बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य कर रही संस्था नियोविजन के संस्थापक गजेंद्र रमोला और युवा साथी पीयूष बिष्ट ‘मोगली’ भी थे । हमने उन महिलाओं से बात की, जो सुबह घर के जरूरी कामकाज निपटाती हैं और फिर दरांती-पाठल लेकर खेतों और जंगलों का रुख करती हैं । हमें यह जानकारी मिली कि इन दिनों महिलाएं जंगलों का रुख कम कर रही हैं, यहां बघेरे (गुलदार) का डर बना है । यहां बघेरा दिन में भी दिखाई दे रहा है । पास के जंगल में पांच-छह बघेरे देखे गए हैं । इसलिए महिलाएं जंगलों से घास नहीं ला रही हैं । घरों के पास ही भीमल की पत्तियां इकट्ठी की जा रही हैं ।

Uniyal Is Running The Campaign : तब जाकर पशुओं के लिए चारा पूरा हो पाता

सिंधवाल गांव निवासी सुधीर मनवाल बताते हैं, सर्दियों में जब चारे का संकट होता है, तब भीमल के पत्ते काफी राहत देते हैं। यह पशुओं के लिए पौष्टिक चारा है और पहाड़ पर भीमल बहुत है । पहाड़ी क्षेत्रों में खेती की सबसे बड़ी समस्या, बंदर व अन्य जंगली जानवरों से है । जिसकी वजह से खेती खत्म हो रही है ।
मोहित बताते हैं, पूरन देवी के चारा पत्ती के बोझ को सिर पर रखकर करीब आधा किमी. दूर स्थित उनके घर तक पहुंचाया । पूरन देवी प्रतिदिन इस तरह के छह-सात गट्ठर जुटाती हैं । तब जाकर पशुओं के लिए चारा पूरा हो पाता है ।

लगभग डेढ़ किमी. और आगे कौलधार गांव में बिजेंद्र सिंह बताते हैं, गांव में बघेरे (गुलदार) आ रहे हैं । उनके आंगन तक पहुंच जाता है । अब तो दिन में भी दिख रहा है । बघेरे ने हफ्तेभर में गांव में ही एक दर्जन से अधिक बकरियां मार दीं । चारा पत्ती इकट्ठा करने के दौरान उनकी पत्नी के पैर में चोट लग गई है ।

Uniyal Is Running The Campaign : इकट्ठा किए चारा पत्ती के बोझ को दो भागों में बांटकर

मोहित उनियाल व राजेश पांडे ने किरन देवी द्वारा इकट्ठा किए चारा पत्ती के बोझ को दो भागों में बांटकर कुछ किमी. पैदल चलकर उनके घर तक पहुंचाया । उनियाल का कहना है, पशुपालन में मातृशक्ति की मेहनत को देखा । किरन देवी ने तीन-चार घंटे की अथक मेहनत से चारा-पत्ती का बोझ तैयार किया । हम उस बोझ का आधा हिस्सा भी नहीं उठा पाए, जिसको लेकर किरन रोजाना दो-तीन किमी. पैदल चलती हैं ।

Uniyal Is Running The Campaign : मातृशक्ति के श्रम को कम करने के लिए नये नजरिये से कार्य करने की जरूरत

राजेश पांडे का कहना है, पशुपालन में मातृशक्ति के श्रम को कम करने के लिए नये नजरिये से कार्य करने की जरूरत है । घरों के पास हरा चारा उगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा सकता है । चिंता इस बात की है, कहीं श्रम एवं समय ज्यादा लगने की वजह से गांवों में पशुपालन कम न हो जाए, जैसा कि देखने को मिलता रहा है । हमारी मुहिम लगातार जारी रहेगी । यह मुहिम इसलिए भी है, क्योंकि हम बच्चों एवं महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए उतनी तेजी से कार्य नहीं कर पाए, जितनी की आवश्यकता है । वर्षों पहले जिन मुद्दों पर बात होती थी, वो आज भी हो रही है ।

 

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