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जेल से जुडी बड़ी खबर जानने के लिए देखें हमारी ये ख़ास रिपोर्ट !

dehradun jail

देहरादून: सरकार के एक फैसले ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर फैसला जल्दबाजी में तो नहीं लिया है यह बहुत सोच समझ कर लिया गया है.. हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड की जहाँ जेल की कमान अब आईपीएस अफसर के हाथों में रहेगी.. ऐसा सुुनना थोड़ा सा अजीब सा तो लगता है लेकिन यही सच है हाल ही में गृह विभाग द्वारा आईपीएस अफसरों जेलो का प्रभार भी सौंपा गया है जब से यह फैसला आया है प्रदेश में एक नई बहस छिड़ गयी क़ानून के जानकारो का मानना हैं कि इससे कैदियों को दिक्कत होनी स्वाभाविक है इसकी वजह से पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशल कस्टडी में कोई भी अंतर नहीं रह जाएगा..

मिसाल के तौर पर अक्सर देखा जाता है कि आरोपी अक्सर पुलिस की पिटाई का जिक्र करता है और इसी को ध्यान में रखते हुए अदालत ने भी इसका संज्ञान समय-समय पर लिया है… पुलिस कस्टडी से जब कैदी को जेल भेजा जाता है तो जेल में एंट्री होने से पहले कैदी का मेडिकल चेकअप भी होता है यही सबसे बड़ा सवाल यंहा खड़ा होता है कि क्या अब मेडिकल चेकअप बिना किसी के दखल के करना संभव होगा? यानि पुलिस के खिलाफ पुलिस खड़ी हो पाएगी एक तरफ तो क़ैदी को न्यायपालिका पुलिस कस्टडी से हटाकर ज्यूडिशल कस्टडी में भेजा जाता है और पुलिस कस्टडी से क़ैदी को जेल में एंट्री दी जाती है तो उसके मेडिकल चेकअप को लेकर विवाद की स्थिति में क्या होगा? क्या जेल में अपराधी का चेकअप करने वाली डॉक्टर्स की टीम पुलिस के खिलाफ रिपोर्ट लगा पाएगी? अब बात करते हैं IPS श्वेता चौबे ने संभाला वरिष्ठ जेल अधीक्षक देहरादून का पदभारनैनीताल जिले की जहां जिले के कप्तान को ही जेल अधीक्षक का प्रभार भी दिया गया है अब इसे लेकर कानून विशेषज्ञ बेहद ज्यादा हैरान है मिसाल के तौर पर पुलिस कस्टडी से न्यायपालिका अपने विवेक अनुसार किसी भी कैदी को पुलिस कस्टडी से जुडिशल कस्टडी में भेजती है तो जरा आप भी सोचिए उस अपराधी/ कैदी का क्या होगा…
सवाल तो बड़ा है लेकिन जवाब अभी तक इसका किसी के पास नहीं… क्या पुलिस अधिकारियों के दखल के बाद आप पकड़े गए अपराधियों की कुटाई बेहतर तरीके से की जाएगी? क्या अपराधियों को सबक सिखाने के लिए उत्तराखंड शासन ने यह फैसला लिया है? क्या इस फैसले से पुलिस की थर्ड डिग्री को बल मिलेगा? क्या अब पुलिस की पीड़ित कैदी न्यायपालिका से शिकायत कर पाएगा? यह तमाम ऐसे गंभीर सवाल है जिसका जवाब मिलना मुश्किल है अगर हम बात करें कि जिले के एसएसपी को कारागार का चार्ज दिया गया हैं आखिर बिना किसी ट्रेनिंग के एसएसपी कैसे संभालेंगे दायित्व… वह इसके उलट अगर जेल अधीक्षक को जिले की कमान सौंप दी जाए तो क्या होगा? यह कुछ ऐसे सवाल है जिसका जवाब देने में कई अफसर भी कतरा रहे हैं… और अंत में महत्वपूर्ण सवाल यह भी कि क्या आईपीएस अफसरो को वेतनमान में कटौती भी की जाएगी या यह मान लिया जाए कि एसएससी साहब का डिमोशन कर दिया गया जबकि दोनों के वेतनमान में जमीन आसमान का अंतर है दोनों ही अफसरों की श्रेणियों में अंतर हैं..

आइए जानते हैं ज्यूडिशल कस्टडी और पुलिस कस्टडी में अंतर…
पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों शब्द एक जैसे ही लगते हैं लेकिन बारीकी से अध्ययन करने के बाद इन दोनों शब्दों में अंतर साफ साफ दिखता है.
ज्ञातव्य है कि किसी आरोपी व्यक्ति को पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी में भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के नियमों के हिसाब से रखा जाता है. पुलिस कस्टडी तथा ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों में संदिग्ध को कानून की हिरासत में रखा जाता है. दोनों प्रकार की कस्टडी का उद्येश्य व्यक्ति को अपराध करने से रोकना होता है….
जब भी पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में लेती है तो वह अपने जांच को आगे बढ़ाने के लिए CRPC की धारा 167 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट से 14 दिन तक के लिए हिरासत में रखने का समय मांग सकती है. एक न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति को 14 दिनों तक किसी भी तरह के हिरासत में भेज सकता है…लेकिन कुछ ऐसे कानून होते हैं जिनके तहत पुलिस किसी आरोपी को 30 दिनों तक भी पुलिस कस्टडी में रख सकती है. जैसे महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम 1999 (मकोका) के तहत पुलिस कस्टडी को 30 दिनों तक के लिए बढ़ाया जा सकता है.
हालाँकि ऐसे कई प्रावधान हैं जो अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ सुरक्षा उपलब्ध करते हैं. यदि किसी की गिरफ़्तारी दण्ड प्रक्रिया संहिता के सेक्शन 46 के अनुसार नहीं हुई है तो उसकी गिरफ़्तारी वैध नहीं मानी जाती है.
पुलिस कस्टडी:
जब पुलिस को किसी व्यक्ति के बारे में सूचना या शिकायत / रिपोर्ट प्राप्त होती है तो सम्बंधित पुलिस अधिकारी अपराध में शामिल संदिग्ध .
इस मामले में शामिल पुलिस अधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह संदिग्ध व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर उचित न्यायाधीश के समक्ष पेश करे और उसके खिलाफ सबूत पेश करे. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि इस 24 घंटे के समय में उस समय को नहीं जोड़ा जाता है जो कि संदिग्ध को पुलिस स्टेशन से कोर्ट लाने में खर्च होता है.
ज्यूडिशियल कस्टडी का अर्थ क्या है?
ज्यूडिशियल या न्यायिक कस्टडी का मतलब है कि व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के आदेश पर जेल में रखा जायेगा. ध्यान रहे कि पुलिस कस्टडी में व्यक्ति को जेल में नहीं रखा जाता है. आपने सुना होगा कि कोर्ट ने फलां आरोपी व्यक्ति को 14 दिन की ज्यूडिशियल हिरासत में भेज दिया है.

आइये अब पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी के बीच अंतर समझते हैं;
1. पुलिस कस्टडी में व्यक्ति को “पुलिस थाने” में पुलिस द्वारा की गयी कार्यवाही के कारण रखा जाता है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में आरोपी को “जेल” में रखा जाता है.
2. पुलिस कस्टडी तब शुरू होती है जब पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी तब शुरू होती है जब न्यायाजेल से धीश आरोपी को पुलिस कस्टडी से जेल भेज देता है.
3. पुलिस कस्टडी में रखे गए आरोपी व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता है लेकिन ज्यूडिशियल कस्टडी में रखे गए व्यक्ति को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चलता है या जब तक अदालत उसे जमानत पर रिहा नहीं कर देती है.
4. पुलिस कस्टडी में पुलिस आरोपी व्यक्ति को मार पीट सकती है ताकि वह अपना अपराध कबूल कर ले. लेकिन यदि कोई व्यक्ति सीधे कोर्ट में हाजिर हो जाता है तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है और वह पुलिस की पिटाई से बच जाता है. यदि पुलिस को किसी प्रकार की पूछताछ करनी हो तो सबसे पहले न्यायाधीश से आज्ञा लेनी पड़ती है. हालाँकि उसके जेल में रहते हुए भी पुलिस उसके खिलाफ सबूत जुटाती रहती है ताकि सबूतों को जज के सामने पेश करके आरोपी को अपराधी साबित करके ज्यादा से ज्यादा सजा दिलाई जाए.
5. पुलिस कस्टडी की अधिकतम अवधि 24 घंटे की होती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में ऐसी कोई अवधि नहीं होती है.
6. जो जमानत पर रिहा अपराधी होते हैं वैसे मामलों में आरोपी को पुलिस कस्टडी में नहीं भेजा जाता और पुलिस कस्टडी तब तक ही रहती है जब तक कि पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है. एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने पर पुलिस के पास आरोपी को हिरासत में रखने का कोई कारण नहीं बचता है.
7. पुलिस कस्टडी, पुलिस द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के अंतर्गत होता है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में गिरफ्तार व्यक्ति न्यायाधीश की सुरक्षा के अंतर्गत होता है.
8. पुलिस कस्टडी किसी भी अपराध जैसे हत्या,लूट, अपहरण, धमकी, चोरी इत्यादि के लिए की जाती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी को पुलिस कस्टडी वाले अपराधों के अलावा कोर्ट की अवहेलना, जमानत ख़ारिज होने जैसे केसों में लागू किया जाता है.
ऊपर दिए गए अंतरों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों का उदेश्य एक ही है अर्थात दोनों अपराध नियंत्रण के उपाय हैं लेकिन दोनों के नियमों में काफी अंतर है.

 

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