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प्रवासी परिदों की अठखेलियां पर्यटकों लिए बनी आकर्षण का केंद्र

रामनगर। सर्दियों की दस्तक होते ही तराई के जलाशयों में हज़ारों मील दूर ठंडे इलाके में रहने वाले पक्षियों का अपने चार माह के प्रवास के लिए आना शुरू हो गया है। प्रवासी परिंदों की जलाशयों में अठखेलियों के चलते पर्यटकों में उत्साह दिख रहा है।
बीते एक पखवाड़े के भीतर ही रामनगर और कॉर्बेट पार्क की नदियां व जलाशय कई प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों से गुलजार हो गए हैं। जलाशयों में अठखेलियां करते परिंदों के दीदार के लिए पक्षी प्रेमी और सैलानियों का पहुंचना भी शुरू हो गया है। बता दें कि सर्दियों की आहट शुरू होते ही तराई व कॉर्बेट लैंडस्केप के जलाशयों में ठंडे प्रदेशों साइबेरिया, तिब्बत, लद्दाख आदि क्षेत्रों में रहने वाले पक्षी हर साल अपना हज़ारों मील का सफर तय करके इस इलाके में पहुंचते हैं। करीब चार माह के प्रवास पर पहुंचे यह परिंदे यहां प्रवास के दौरान प्रजनन कर अंडे देते हैं। अंडों से निकले बच्चों की प्राथमिक परवरिश हल्की-फुल्की उड़ान के साथ इन्हीं जलाशयों में होती है। बच्चों के कुछ बड़ा होने और मौसम पर वसंत की दस्तक लगने पर यह प्रवासी पक्षी अपने बच्चों को साथ लेकर उन्हें हज़ारों मील लंबी उड़ान का प्रशिक्षण देने और अपनी दुनिया की दुनियादारी सिखाने के लिए अपने मूल स्थान की ओर रवाना हो जाते हैं।
हर साल होने वाले इसी सिलसिले के तहत इस साल भी इलाके की कोसी, रामगंगा नदी समेत आसपास की नदियों और जलाशयों में प्रवासी कॉर्बेट लैंड स्केप में 550 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियों के संसार को बाहरी प्रदेशों से आने वाली सुर्खाब, वाल कीपर, ब्लैक स्टार्क, पिनटेल, क्विंटल, कार्बोरेंच जैसी तमाम प्रजाति के यह परिंदे और ज्यादा निखारते हैं। नैनीताल व उधमसिंहनगर जिले की कोसी, रामगंगा नदी, मालधन, भोगपुर बौर, हरीपुरा जलाशय जैसे कई इलाके इनसे गुलजार होते हैं। अलग-अलग वजह से कॉर्बेट नेशनल पार्क घूमने आने वाले सैलानियों के लिए यह परिंदे एक ऐसा अतिरिक्त आकर्षण पैदा करते हैं, जो किसी और समय उपलब्ध नहीं होता है। कॉर्बेट पार्क घूमने आने वाले बर्ड वाचर के लिए सुर्खाब के परों वाली चिड़िया जिसे रेडी शैलडक के नाम से जाना जाता है, का आकर्षण सबसे ज्यादा रहता है। प्रवासी परिंदों का यहां की अर्थव्यवस्था में भी योगदान रहता है। पर्यटन से जुड़े कारोबारियों के लिए यह रोजी-रोटी के जरिया बनते हैं।
बर्ड वाचर संजय छिमवाल की माने तो अभी तक यहां पर ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के करीब 20 जोड़े, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट के 10 जोड़े, रेड शैलडक के सौ जोड़े पहुंच चुके हैं, जिनकी संख्या में और भी बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। मेहमान परिंदों के इस रोचक सफर का काला पक्ष इनका बेदर्दी से शिकार है, जिसके लिए इन परिदों की सुरक्षा के लिए वन महकमा इन दिनों खासा चौकस रहता है। फिलहाल, विभाग उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम की बात कर रहा है, लेकिन जिस प्रकार चोरी छिपे इनका शिकार किया जाता है उससे साफ है कि केवल सरकारी महकमे के भरोसे इनकी सुरक्षा छोड़कर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। जनता में इसके लिए जागरूकता फैलानी होगी, तभी इन प्रवासी परिंदों के इस रोमांचक सफर को आने वाली पीढ़ियों के दीदार के लिए सुरक्षित रखा जा सकेगा।

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