अंतरराष्ट्रीय

जॉर्ज फ्लॉयड की पहली बरसी पर अमेरिका में जगह-जगह स्मृति समारोहों का आयोजन

ब्लैक नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या की पहली बरसी अमेरिका में एक बड़ा मौका बनी। बुधवार को इस मौके पर जगह-जगह स्मृति समारोहों का आयोजन हुआ। साथ ही इस दिन को देश में और मीडिया में ऐसी कई चर्चाएं हुईं, जिनमें अमेरिका में जारी नस्लभेद के कारणों को समझने की कोशिश की गई। फ्लॉयड की रिश्तेदार अंगेला हैरेलसन ने टीवी चैनल सीएनएन पर कहा- ‘मैं इसे राहत के एक दिन के रूप में ले रही हूं। मुझ में यह देखकर उम्मीद जगी है कि अब बदलाव आ रहा है।’पिछले साल एक पुलिसकर्मी के हाथों फ्लॉयड की मौत के बाद पूरे देश में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन भड़क उठा था। आंदोलन ने कई जगहों पर हिंसक रूप भी लिया। हाल ही में आरोपी पुलिसकर्मी को अदालत ने सजा सुनाई। इसके बावजूद फ्लॉयड की बरसी पर हुई चर्चाओं में ज्यादा जानकारों ने यही राय जताई कि अमेरिका में नस्लभेद खत्म करने में अभी काफी वक्त लगेगा।

यूरो न्यूज टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन विषय के प्रोफेसर वालास फॉर्ड ने कहा कि नस्लभेद को कुछ महीनों या वर्षों में खत्म करना संभव नहीं है। उन्होंने कहा- ‘अगर आप सिस्टम बदलना चाहते हैं तो उसके लिए व्यवस्थागत प्रयास करने होंगे। यह सिर्फ कुछ महीनों या वर्षों तक चले विरोध प्रदर्शनों से नहीं होगा।’ फॉर्ड ने कहा कि पिछले साल हुए आंदोलन के बाद अमेरिका में नस्लभेद की समस्या को लेकर जागरूकता बढ़ी है। उन्होंने कहा- ‘इस तथ्य पर आज अधिक जागरूकता है कि अमेरिका में नस्लीय गैर बराबरी है, जिसकी जड़ 400 साल पुरानी अमेरिकी परंपरा में है। लेकिन कोई व्यवस्थागत बदलाव आया है, ऐसा हमें कुछ नजर नहीं आता।’पिछले एक साल में नस्लीय हिंसा को लेकर कई बार लोग सड़कों पर उतरे हैं। बीते अप्रैल में ही 20 वर्षीय ब्लैक डाउन्टे राइट की मिनियापोलिस शहर में गोली मार कर की गई हत्या के बाद फिर से प्रदर्शन भड़क उठे। लेकिन फोर्ड ने कहा कि असल बदलाव तब आएगा, जब लोग यह मानें कि देश में व्यवस्थागत नस्लभेद मौजूद है। जानकारों ने ध्यान दिया है कि जो बाइडन ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने खुलेआम स्वीकार किया है कि ऐसा भेदभाव अमेरिका में मौजूद है। जानकारों की राय में समस्या दूर करने की राह में राष्ट्रपति का खुल कर ऐसा कहना एक बड़ा कदम है।

अमेरिका में काले समुदाय के लोगों ने अपने लिए बराबरी की मांग करते हुए 1960 के दशक में मशहूर सिविल राइट्स आंदोलन चलाया था। उस आंदोलन के प्रमुख नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर थे, जिनकी बाद में हत्या कर दी गई। उस आंदोलन के दौरान सरकार ने नस्लभेद की समस्या का हल ढूंढने के लिए एक आयोग बनाया था, जिसे कर्नर आयोग के नाम से जाना गया। 1968 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन को सौंपी थी।जॉर्ज फ्लॉयड की बरसी पर ब्लैक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि आयोग ने नस्लभेद खत्म करने का फॉर्मूला दिया था। लेकिन उस फॉर्मूले पर पूरी तरह अमल ना करने का ही परिणाम है कि आज भी देश इस मसले से जूझ रहा है। टीवी चैनल सीएनएन पर एक कार्यक्रम में नीति विश्लेषकों और इतिहासकारों ने कहा कि बदलाव तभी आएगा, जब लोगों में इसके लिए इच्छाशक्ति हो और सरकार ईमानदारी से नस्लीय गैर बराबरी दूर करने के लिए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक कदम उठाए। इतिहासकार जिलानी कॉब ने कहा कि लोगों और संस्थाओं को यह मालूम है कि ये समस्या है। अब अगर वे कर्नर आयोग की सिफारिशों का पालन करें और उसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हों, तो सूरत बदल सकती है।

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