संवाददाता(देहरादून): राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने आयुर्वेद की पुस्तकों का अधिक से अधिक हिन्दी व अंग्रेजी में अनुवाद कर इनका लाभ आम जनमानस तक पहुंचाने की जरूरत पर बल दिया है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि आयुर्वेद के शोधकार्य संस्कृत व हिन्दी में होने चाहिये। संस्कृत को जनभाषा बनाने का प्रयास किया जाना चाहिये। राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत भाषा से जुडे़ विद्वानों, शिक्षकों तथा विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे संस्कृत साहित्य में निहित ज्ञान-विज्ञान को जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे। इस कार्य में विभिन्न प्रचार माध्यमों के साथ ही सोशल मीडिया सहायक सिद्ध हो सकता है।
राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य ने मंगलवार को उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय तथा संस्कृत भारती उत्तरांच्चलम् द्वारा आयोजित ‘‘आयुर्वेदाय संस्कृतम्’’ तथा ‘‘संस्कृत संभाषणम्’’ विषयों पर दस दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला का शुभारम्भ किया। कार्यशाला को सम्बोधित करते हुये राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा नही है बल्कि एक सम्पूर्ण संस्कृति, ज्ञान का असीमित भण्डार, संस्कारों व सभ्यता का स्रोत भी है। आज माना जाता है कि संस्कृत विश्वभर में सबसे शुद्ध तथा वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत केवल ज्ञान की ही नहीं अपितु विज्ञान की भी भाषा है। यह भी माना जाता है कि संस्कृत का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को गणित, विज्ञान तथा अन्य भाषाएँ सीखने में आसानी होती है। इससे विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति भी बढ़ती है। संस्कृत भाषा में वैदिक उच्चारण से मन, शरीर और आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि हमारे लिये यह गर्व का विषय है कि संस्कृत उत्तराखण्ड की राजभाषा है। यहाँ संस्कृत के अध्ययन हेतु अच्छे शैक्षणिक संस्थान हैं। राज्य सरकार द्वारा संस्कृत के प्रचार-प्रसार व प्रोत्साहन के लिये समुचित कार्य किया जा रहा है। राजभवन द्वारा भी प्रत्येक वर्ष संस्कृत के विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य के संस्कृत शिक्षा बोर्ड के टाॅपर्स विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाता है। साथ ही शिक्षकों भी सम्मानित किया जाता है।
राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि ‘‘आयुर्वेदाय संस्कृतम्’’ अर्थात आयुर्वेद को गहनता से समझने के लिये संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है। आयुर्वेद तथा इससे सम्बन्धित सभी विषयों की मूल भाषा संस्कृत ही है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों को संस्कृत भाषा का ज्ञान होने से वे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति तथा इसके दर्शन को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे तथा रोगियों को उत्तम उपचार दे पाएंगे।
राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संस्कृत के विद्यार्थियों में संस्कृत भाषा में बातचीत को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। संस्कृत को राष्ट्रीय तथा अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। इस अवसर पर उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुनील कुमार जोशी ने कहा कि आयुर्वेद को बेहतर ढंग से समझने के लिये संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है। आयुर्वेद के शोधपत्रों को संस्कृत में लिखा जाना चाहिये। आयुर्वेद तथा संस्कृत का समुचित प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिये।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुये राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि संस्कृत मात्र एक भाषा नही है बल्कि एक सम्पूर्ण संस्कृति, ज्ञान का असीमित भण्डार, संस्कारों व सभ्यता का स्रोत भी है। आज माना जाता है कि संस्कृत विश्वभर में सबसे शुद्ध तथा वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत केवल ज्ञान की ही नहीं अपितु विज्ञान की भी भाषा है। यह भी माना जाता है कि संस्कृत का अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को गणित, विज्ञान तथा अन्य भाषाएँ सीखने में आसानी होती है। इससे विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति भी बढ़ती है। संस्कृत भाषा में वैदिक उच्चारण से मन, शरीर और आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि हमारे लिये यह गर्व का विषय है कि संस्कृत उत्तराखण्ड की राजभाषा है। यहाँ संस्कृत के अध्ययन हेतु अच्छे शैक्षणिक संस्थान हैं। राज्य सरकार द्वारा संस्कृत के प्रचार-प्रसार व प्रोत्साहन के लिये समुचित कार्य किया जा रहा है। राजभवन द्वारा भी प्रत्येक वर्ष संस्कृत के विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य के संस्कृत शिक्षा बोर्ड के टाॅपर्स विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाता है। साथ ही शिक्षकों भी सम्मानित किया जाता है।
राज्यपाल श्रीमती मौर्य ने कहा कि ‘‘आयुर्वेदाय संस्कृतम्’’ अर्थात आयुर्वेद को गहनता से समझने के लिये संस्कृत भाषा का ज्ञान आवश्यक है। आयुर्वेद तथा इससे सम्बन्धित सभी विषयों की मूल भाषा संस्कृत ही है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों को संस्कृत भाषा का ज्ञान होने से वे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति तथा इसके दर्शन को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे तथा रोगियों को उत्तम उपचार दे पाएंगे।