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नवरात्र स्पेशल: बोल पड़ेंगे भक्त “शेरों वाली मैया की जय”

“जब मारते हो बेटियां, और पुजते हो कन्या ही
जब चीखती है बेटियां तो पीटते हो तुम तो ही”

संवाददाता : जैसा की हम सभी जानते है कि नवरात्रों का सीजन आने वाला है। एक ओर जहां नवरात्र आने से एक हफ्ते पहले ही घरों की साफ-सफाई आरंभ हो जाती है। वही लोग मंदिरो को भी साफ करना प्रारंभ कर देते है। बडे़-बड़े मंदिरों में साफ-सफाई के दौरान चहल -पहल भी बढ़ जाती हैं। अक्सर देख गया है कि नवरात्रों के समय में भक्तगण मंदिरो में देर रात तक बैठकर जागरण-कीर्तन करते है अथवा सुबह होने पर प्रसाद के रूप में पंजीरी को भक्त जनों को देते है।

नवरात्र के दौरान भक्तगण के मन पर भगवान की छवी इस कदर छाई रहती है कि भक्त भगवान का नाम लिए बगैर नहीं रह पाते है। बोलो “सच्चे दरबार की जय”। इन्ही जयकारों के साथ भक्तगण दौहराते है व भगवान की आस्था में लीन हो जाते है। भक्तगणों का मानना है कि भगवान के दरबार में जो कोई भी आता है। वह कभी भी खाली हाथ लौटकर नही जाता हैं। नवरात्र लगने के दौरान ज्यादात्तर महिलाएं व्रत, उपवास रखती है। तथा घर में समृद्धि की कामना करती है। ढोल, कीर्तन कर महिलाए शेरों वाली मैया को प्रसन्न करती है। कहते है जिस घर में माँ की इज्जत होती है उस घर में शेरो वाली माँ का वरदान होता है।

जानते है किस दिन कौनसी मैया का व्रत होता है

मां शैलपुत्री

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, इसलिए इन्हें पार्वती एवं हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। मां शैलपुत्री की आराधना से मन वांछित फल मिलता है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और मां के बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।

ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्तों का जीवन सफल हो जाता है। ब्रह्मचारिणी ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या, यानी तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें मां ब्रह्मचारिणी कहा गया है।

चंद्रघंटा


मां के तीसरा रूप चंद्रघंटा हैं। उनके इस स्वरूप का ध्यान हमें अपनी दुर्बलताओं से साहसपूर्वक लड़ते हुए उन पर विजय प्राप्त करने की शिक्षा देता हैं। मां का यह स्वरूप दस भुजाओं वाला है, जिनसे वे असुरों से युद्ध करने जाने के लिए उद्यत हैं।

कुष्मांडा

नवरात्र के चौथे दिन मां के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी के बारे में कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।

स्कंदमाता

नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। गोद में स्कन्द यानी कार्तिकेय स्वामी को लेकर विराजित माता का यह स्वरुप प्रेम, स्नेह, संवेदना को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

कात्यायनी

मां दुर्गा की छठी शक्ति को कात्यायनी के रूप में जाना जाता हैं। कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनके इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा। कात्यायन ऋषि ने देवी को पुत्री-रूप में पाने के लिए भगवती की कठोर तपस्या की थी।

कालरात्रि

मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। उनके शरीर का रंग अंधकार की तरह काला हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला हैं। तीन नेत्र ब्रमांड की तरह गोल हैं, जिनसे ज्योति निकलती हैं। इस स्वरूप का ध्यान हमारे जीवन के अंधकार से मुकाबला कर उसे प्रकाश की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करता हैं।

महागौरी

मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।

सिद्धिदात्री

भक्तों नवरात्रि के नौवें दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा होती है। मां सिद्धिदात्री स्वरुप को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।

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