Kali Kumaon’s Standing Holi : यूं तो होली पूरे देश में उल्लास के साथ मनाई जाती है, लेकिन चंपावत जिले में ढोल नगाड़ों की धुन और लय-ताल और नृत्य के साथ गाई जाने वाली खड़ी होली अपना विशेष स्थान रखती है। संगीत सुरों के बीच बैठकी होली के भक्ति, शृंगार, संयोग, वियोग से भरे गीत गाने की परंपरा काली कुमाऊं अंचल के गांव-गांव में चली आ रही है।
Kali Kumaon’s Standing Holi : हास्य ठिठोली से भरी होलियां भी गाई जाती
एकादशी को रंगों की शुरूआत के बाद गांव-गांव में ढोल-झांझर और पैरों की विशेष कदम ताल के साथ खड़ी होली गायन चलता है। इसी दिन चीर बंधन के साथ शिव स्तुति से होली गायन शुरू किया जाता है। इसमें शिव के मन माहि बसे काशी…, हरि धरै मुकुट खेले होरी… शामिल है। आध्यात्मिक रसों, भक्ति, शृंगार आदि से जुड़ीं होलियों का गायन छरड़ी तक किया जाता है। इसके अलावा परिवार, समाज में होने वाली विभिन्न घटनाओं, स्त्री पुरुष प्रसंग, हास्य ठिठोली से भरी होलियां भी गाई जाती हैं।
Kali Kumaon’s Standing Holi : कुमाऊं में साल 1850 से बैठकी होली गायन हो रहा
कुमाऊं में साल 1850 से बैठकी होली गायन हो रहा है। होली हर्ष, उल्लास और ऋतु परिवर्तन का पर्व है। जनसामान्य इसे होलिका एवं प्रहलाद के प्रसंग से जोड़कर देखता है, लेकिन होली का मनोविनोद, गीत संगीत, मिलना, रंग खेलना एक पक्ष है तो होलिका दहन दूसरा। कुमाऊं की होली गीतों से जुड़ी है, जिसमें खड़ी व बैठकी होली ग्रामीण अंचल की ठेठ सामूहिक अभिव्यक्ति है। यह कहना है संगीताचार्य टनकपुर महाविद्यालय संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज उप्रेती का।
Kali Kumaon’s Standing Holi : ‘पिया के विरह में भई हूं मै बावरी, विरह कलेजुआ में चोट दई रे…
‘पिया के विरह में भई हूं मै बावरी, विरह कलेजुआ में चोट दई रे…’ और ‘आज पिया के गलेवा लगूंगी, कलंक लगे सो लगे हो, सास बुरी गोरी, ननद हठीली, देवरा लड़ै तो, लड़ै हूं’ जैसे होली गीतों में विरह बखूबी झलकता है। ‘जल कैसे भरूं जमुना गहरी, ठाड़ेे भरूं राजा राम जी देखे, बैठी भरूं छलके गगरी’ में अपने परिधान को लेकर स्वयं महिला की परेशानी झलकती है। ‘अब कैसे जोबना बचाओगी गोरी, फागुन मस्त महीना की होरी’ होली गीत पर इठलाती गोरी को सखियां फागुन में पशोपेश में डाल देती हैं।
Kali Kumaon’s Standing Holi : होली का गायन शास्त्रीय होते हुए भी लोक का ढब
कुमाऊं में होली गीतों के रचनाकारों में पं. लोकरत्न गुमानी का नाम भी आता है। उनकी एक रचना राग श्यामकल्याण में मुरली नागिन सों वंशी, नागिन सों कह विधि फाग रचायो, मोहन मन लीनो… है। आम तौर पर होली गायन काफी राग में होता है, लेकिन कुमाऊं में धमार, पीलू, खमाज, बहार, जंगलाकाफी, देश, बिहाग, भैरवी, परज, बागेश्वरी, सहाना में भी होली गायन की परंपरा है। बैठकी होली का गायन शास्त्रीय होते हुए भी लोक का ढब है जो इसे अलग शैली का रंग देता है।