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जरा सोचें, आवाजाही को रास्ता न मिले तो कैसा महसूस करेंगे आप, कुछ यही झुंझलाहट रहती है हाथियों में

Just think, how will you feel if there is no way for movement, there is some annoyance in elephants

देहरादून: जरा सोचिये, यदि आवाजाही को रास्ता नहीं होगा या फिर बाधित होगा तो आप कैसा महसूस करेंगे। जाहिर है कि आप घर अथवा क्षेत्र विशेष में कैद होकर रह जाएंगे और यह आपकी झल्लाहट को भी बढ़ाएगा। उत्तराखंड में वन्यजीव ऐसी ही झुंझलाहट से दो-चार हो रहे हैं। वजह, एक से दूसरे जंगल में आवाजाही के रास्तों का बाधित होना। ऐसे में टकराव नहीं होगा तो क्या होगा।

खासकर, हाथियों के मामले में तो यह दिक्कत अधिक देखने में आ रही है। साढ़े छह हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के दायरे में उनके आने-जाने के 11 गलियारे बाधित हैं। कहीं मानव बस्ती उग आई है तो कहीं सड़क व रेल मार्गों ने दिक्कत खड़ी की है। ऐसे में आवाजाही के लिए वे नए रास्ते तलाशेंगे ही और वे तलाश भी रहे हैं। पूर्व में ऐसे रास्ते चिह्नित करने की बात हुई थी, लेकिन ठोस पहल अब तक नहीं हो पाई है।

व्यवहार तो हमें ही बदलना होगा

वन्यजीव विविधता वाले उत्तराखंड में राज्य गठन के बाद से एक विषय सबसे अधिक चर्चा में है। वह है यहां लगातार गहराता मानव-वन्यजीव संघर्ष। हर रोज ही वन्यजीवों के हमले सुर्खियां बन रहे हैं, मगर समस्या जस की तस है। यह भी बड़ा सवाल है कि क्या वाकई में हम इसे लेकर गंभीर हैं अथवा नहीं। वन्यजीव अपनी हद में रहें, इसके लिए तमाम उपायों की बात तो हो रही है, लेकिन इनके सार्थक नतीजे निकलते नहीं दिख रहे।

सूरतेहाल, इस मसले को लेकर सामूहिक प्रयासों की दरकार है। संघर्ष की रोकथाम के लिए सरकार तो प्रभावी कदम उठाए ही, आमजन का भी सजग होना आवश्यक है। सोचने वाली बात ये है कि वन्यजीव तो स्वयं का व्यवहार बदलेंगे नहीं, ऐसे में मनुष्य को ही अपना व्यवहार बदलना होगा। यानी, सह-अस्तित्व की भावना के अनुरूप हमें वन्यजीवों के साथ रहना सीखना होगा और इसी के अनुरूप उपाय भी करने होंगे।

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