इस्तेमाल हो रहे उपकरणों व दवाओं का अधिकतम मूल्य तत्काल तय करे ताकि इनकी कालाबाजारी व जमाखोरी रुक सके। जिन लोगों पर इन आरोपों में 2 मई से केस दर्ज हुए हैं उनके खिलाफ अवमानना नोटिस भी जारी किए किए गए हैं। कोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में 40 केस दर्ज हुए हैं। जमाखोरी व कालाबाजारी के आरोपियों को कोर्ट ने अगली सुनवाई में 19 मई को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मौजूद रहने को कहा है।
इसके अलावा हाईकोर्ट ने महामारी के दौरान अस्पताल प्रबंधकों द्वारा मरीजों से अत्यधिक शुल्क वसूलने पर गहरी चिंता जताई है। अदालत ने दिल्ली सरकार को अस्पताल व उनकी एसोसिएशन से बैठक कर इलाज के लिए मूल्य निर्धारित करने को कहा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि जल्द ऐसा नहीं किया गया तो वे आदेश पारित करेंगे।न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेख पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है। सरकार को निजी अस्पतालों व नर्सिंग होम में इलाज के रेट तय करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। दिल्ली सरकार ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग प्रधान सचिव को अस्पताल प्रबंधकों से बैठक को आग्रह किया गया है।दरअसल खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता अभय गुप्ता ने केरल सरकार के सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने जो रेट तय किए वह दिल्ली सरकार द्वारा पिछले वर्ष तय रेटों से भी कम हैं।अदालत ने हाल ही में सरकार से पूछा था कि क्या कोविड-19 मामलों में भारी वृद्धि को देखते हुए पहले से तय दरों को संशोधित किया जाना चाहिए क्योंकि कई अस्पतालों को अब 100 प्रतिशत कोविड-19 सुविधाओं में बदल दिया गया है। गुप्ता ने अदालत को बताया कि अस्पताल में इलाज के लिए लिये जा रहे ज्यादा शुल्क की शिकायतों सोशल मीडिया भरा हुआ है। उन्होंने कहा सरकार मुफ्त पानी, बिजली दे रही है लेकिन यदि हम जिंदा रहे तभी इन सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं।दिल्ली सरकार के अधिवक्ता सत्यकाम ने कहा कि जब भी कोई शिकायत आती है तो उस पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। बिना शिकायत के हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अस्पताल भी महामारी से निपट रहे हैं।
अदालत ने उनके तर्क पर असहमति जताते हुए कहा कि यदि कोई शिकायत नहीं आती तो हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते। वहीं अधिवक्ता राहुल मेहरा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग प्रधान सचिव से सभी अस्पतालों से मीटिंग करने का आग्रह किया गया है।अदालत ने कहा अस्पतालों द्वारा मरीजों से अधिक शुल्क वसूलने का मामला काफी गंभीर है। सरकार सभी संबंधित पक्षों से विचार विमर्श कर इलाज की दरें तय करे। इसके अलावा पिछले वर्ष तय दरों में भी संशोधन पर शीघ्रता से विचार कर निर्णय ले। सुनवाई के दौरान मेहरा ने खंडपीठ का ध्यान अस्पतालों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की ओर दिलाते हुए कहा कि हम कड़ी कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन ऐसे में अस्पताल अदालत में आ जाते है व अदालत के हस्तक्षेप करने पर उन्हें आदेश वापस लेना पड़ा है।