उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के उस तर्क को खारिज करते हुए नाराजगी जताई है कि ऐसे रोगियों को उस राज्य से दवा व चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए जहां वे इलाज करवा रहे हैं। अदालत ने कहा कि कोविड-19 की दूसरी लहर में संक्रमण के घातक होने व राष्ट्रीय राजधानी के स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की अधूरी तैयारियों के होने के चलते ही लोगों को पड़ोसी राज्यों के अस्पतालों में इलाज के लिए मजबूर किया है। इतना ही नहीं अदालत ने ब्लैक फंगस दवा पर केंद्र, दिल्ली व हरियाणा सरकार से जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने यह टिप्पणी दिल्ली निवासी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान की है, जिसमें गुरुग्राम के एक अस्पताल में भर्ती उनके पिता के लिए ब्लैक फंगस के इलाज में इस्तेमाल किए जाने वाले लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी इंजेक्शन/एमफोनेक्स-50 की मांग की गई थी। जबकि दिल्ली सरकार ने दवा से इनकार कर दिया।अदालत ने इस मामले में केंद्र, दिल्ली व हरियाणा सरकार को नोटिस जारी जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 25 मई तय की है। दिल्ली सरकार ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता के पिता का इलाज राष्ट्रीय राजधानी के किसी अस्पताल में नहीं हो रहा था, बल्कि गुरुग्राम में हो रहा है। ऐसे में वह हरियाणा में संबंधित अधिकारियों से दवा मांग सकता है।अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पिता का कोविड का इलाज एक महीने से अधिक समय से किया जा रहा था। अब वह जिस दवा की मांग कर रहे हैं, वह मरीज के इलाज के लिए तुरंत जरूरी है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आम लोगों के ज्ञान की बात है कि कोविड-19 की दूसरी लहर के घातक संक्रामक की प्रकृति और राजधानी में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की अधूरी तैयारी ने याचिकाकर्ता के पिता की तरह दिल्ली के कई अन्य हताश लोगों को पड़ोसी राज्यों के अस्पतालों में दाखिले व चिकित्सा के लिए जाना पड़ा।
अदालत ने कहा कि उनका मानना है कि यह न्याय के हित में होगा कि दिल्ली सरकार को याचिकाकर्ता के आग्रह के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए यदि संभव हो तो उनके पिता के इलाज के लिए आवश्यक दवा उपलब्ध कराना चाहिए, भले ही कम से कम अगले कुछ दिनों के लिए।