संवाददाता(देहरादून): उत्तराखंड में कुदरत की ऐसी नेमत है कि यहां पहाड़ों पर जगह-जगह बड़े-बड़े झरने हैं। खास बात यह है कि राज्य में कई स्थानों पर बेहद गर्मपानी के स्रोत तो हैं ही झरना भी है। इन्हीं झरनों से अब बिजली उत्पादन की तैयारी चल रही है। योजना तैयार हो चुकी है। हिमालयी क्षेत्र का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट जोशीमठ में लगने जा रहा है। वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने जियोथर्मल तकनीक के आधार पर देशभर में झरनों की खोज की है। इन झरनों से ग्रीन इनर्जी के रूप में जियोथर्मल एनर्जी प्लांट स्थापित करने की तैयारी की योजना तैयार की है। जोशीमठ में लगने वाले प्लांट की क्षमता पांच मेगावाट की होगी और यह हिमालयी क्षेत्र का पहला जियोथर्मल एनर्जी प्लांट भी होगा।
वाडिया संस्थान के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने बताया कि पावर प्लांट लगाने के लिए चमोली के जोशीमठ के तपोवन के झरने को चुना गया है। उन्होंने बताया कि यहां पर सतह का तापमान करीब 93 डिग्री है, जबकि जमीन के भीतर यही तापमान 150 डिग्री सेल्सियस तक है। पावर प्लांट लगाने के लिए जमीन में करीब 400 मीटर तक ड्रिल किया जाएगा। इससे गर्म पानी अधिक फोर्स के साथ बाहर निकलेगा। प्लांट के जरिये गर्म पानी की भाप से बिजली तैयार की जाएगी।
पानी को महज 70 डिग्री तापमान में ही उबालने वाली स्थिति में पहुंचाने वाले प्रोपेन व बाइनरी लिक्विड के मिश्रण का प्रयोग किया जाएगा। इससे पहले से अधिक गर्म पानी बिजली उत्पादन के लिए जल्द अधिक भाप पैदा करेगा। डॉ. कालाचंद ने बताया कि संस्थान जियोथर्मल एनर्जी की दिशा में 10 साल से शोध कर रहा था। जियोथर्मल तकनीक के जरिये इस काम को अंजाम देने में संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. संतोष कुमार राय व डॉ. समीर के तिवारी ने अहम भूमिका निभाई। प्रोजेक्ट तैयार करने की अवधि पांच साल रखी गई है।
वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के के शोध में खुलासा हुआ है कि 1970 में तपोवन के पानी का जो तापमान था, वही आज भी बरकरार है। यहां के पानी में लीटर 30 मिलीग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड निकल रहा है। इतना ही नहीं इस बेहद खास झरने के पानी में बोरोन (600 से 30 हजार माइक्रो इक्यूवेलेंट), हीलीयम (90 मिलीग्राम प्रतिलीटर) व लीथियम (50 से 3550 माइक्रो इक्यूवेलेंट) जैसे तत्व भी हैं। जिसको संसथान के वैगयानिक संरक्षित करने की तैयारी कर रहे हैं।