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कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत बोले, मुझे हर तरह से फंसाना चाहते थे हरीश रावत

देहरादून: पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत द्वारा वर्ष 2016 में कांग्रेस से बगावत करने वालों को ‘पापी’ और ‘अपराधी’ की संज्ञा दिए जाने संबंधी बयान से कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत बेहद आहत हैं। मंगलवार को मीडिया से बातचीत में हरक ने अपने इस दर्द को खुलकर बयां किया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि हरीश रावत उन्हें हर तरह से फंसाना चाहते थे। उन पर व्यक्तिगत चरित्र हनन तक के आरोप लगवाने के लिए हरीश रावत ने षड्यंत्र रचा था। इस तरह के षड्यंत्र रचने वाला व्यक्ति यदि हमें पापी व अपराधी कहता है, तो दुख होता है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार को गिराने में हरक ने भी मुख्य भूमिका निभाई थी। वह भी उन नौ विधायकों में शामिल थे, जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था।कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने कहा कि हरीश रावत को तकलीफ उनसे है। सतपाल महाराज से भी हो सकती है। हरक ने कहा कि हरीश रावत ने पहले पापी और फिर अपराधी कहा। मार्च 2016 के घटनाक्रम के बाद हरीश रावत करीब आठ माह मुख्यमंत्री रहे। तब उनके कार्यालय पर खुद मुख्यमंत्री ने ताला लगाया। सहसपुर की जमीन की एसआइटी जांच कराई। हरक ने कहा, ‘यदि मैं कहीं भी गलत होता तो हरीश रावत उन्हें जेल में डलवा देते।’

हरक यही नहीं रुके और बोले, ‘महिलाओं के जरिये उन पर चरित्र हनन के आरोप लगाने का षड्यंत्र रचा गया। पैसे का लालच व प्रलोभन दिया गया कि बस हरक सिंह पर आरोप लगा दो।’ उन्होंने कहा कि हरीश रावत उन्हें हर तरह से फंसाना चाहते थे। राजनीति में बदले की भावना में इतना नीचे गिरकर कोई इस तरह के षड्यंत्र करे तो यह ठीक नहीं है। हरक ने कहा कि यदि हरीश रावत छात्र राजनीति से उठकर आए हैं तो उनका संघर्ष भी कम नहीं है। हरक ने कहा कि वह भी छात्र राजनीति से आए हैं। बलि प्रथा, रामजन्म भूमि आंदोलन, उत्तराखंड आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। दिल्ली में जंतर-मंतर पर हरीश रावत का धरना तीन दिन में ही उठ गया था, जबकि उनके द्वारा वर्ष 1994 से शुरू किया गया धरना वर्ष 2000 में राज्य बनने तक चला।

चार जिले और आठ तहसीलें बनाईं

हरक ने कहा कि जब संघर्ष की गाथा लिखी जाएगी तो उनका योगदान भी कमतर नहीं है। उन्होंने कहा कि पूर्व में उन्होंने बसपा में जाकर अपना राजनीतिक नुकसान किया, लेकिन उत्तराखंड के हित में अनेक फैसले कराए। तब बागेश्वर, चम्पावत, रुद्रप्रयाग व पिथौरागढ़ जिलों के साथ ही विकासनगर, श्रीनगर, ऋषिकेश, कपकोट, गैरसैंण, पोखरी, घनसाली व जखोली तहसीलों का निर्माण भी कराया। वैसे भी वर्ष 1997 के बाद उत्तराखंड में कोई भी नया जिला नहीं बना है। उन्होंने कहा कि विकास के मामले में उनके द्वारा कभी कोई भेदभाव नहीं किया गया। न कभी गढ़वाल व कुमाऊं की भावना को मन में आने दिया।

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