देहरादून: दून अस्पताल में कहने को तो कोरोनाकाल में बहुत काम हुआ है।। लेकिन कुछ डॉक्टर ऐसे है कि अस्पताल की साख पर बट्टा लगा रहे है। वह मरीजों को अस्पताल में अपनी ओपीडी में देखना गवारा नहीं समझते। दून अस्पताल में उनकी ओपीडी तो बस गिनती की है, ज्यादातर मरीजो को अपने अस्पतालों या जहां वह प्रैक्टिस करते है। वहां बुलाते है। ह्रदय रोग विभाग, हड्डी, स्किन, मेडिसन, सर्जरी, डेंटल, ईएनटी समेत कई विभागों का ऐसा ही हाल है। ओपीडी का समय वैसे तो सुबह 8 से 2 बजे का है। लेकिन डॉक्टर 9:30 बजे से पहले आपको ओपीडी में नहीं मिलेंगे। इसके अलावा दो बजे तक बैठने का समय है, लेकिन एक बजे के बाद कोई डॉक्टर यहां नहीं मिलेंगे।
प्राचार्य बोले, सिस्टम को सुधारने में लगा हूं
प्राचार्य डॉक्टर आशुतोष सयाना को जब ह्रदय रोग विभाग के डॉक्टर अमर उपाध्याय द्वारा मरीज़ो एवं तीमारदारों से अभद्रता एवं प्राइवेट में देखने की शिकायत की गई तो प्राचार्य भी डॉक्टरो की कारगुजारियों से आहत दिखे। अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि मै पूरे सिस्टम को सुधारने में लगा हूँ। कई डॉक्टरो की इस तरह की शिकायतें हैं। उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई की जा रही है। टाइम से न आने वाले डॉक्टरो की मॉनिटरिंग की जा रही है। ऐसे लापरवाह डॉक्टरो पर कड़ी कार्रवाई होगी।
जूते की नोक पर रखते है नौकरी
एक मरीज को प्राचार्य की दखल के बाद जब डॉक्टर ने देखा तो वहां भी उनकी अकड़ देखने लायक थी। तीमारदार को ही यहां तक कहा कि किसी गलतफहमी में मत रहना 84 हजार की नौकरी वह अपने जूते की नौक पर रखते है।
सरकार देती एनपीए
मेडिकल कॉलेजों में तैनात डॉक्टर निजी प्रैक्टिस ना करें। इसके लिए सरकार नॉन प्रैक्टिस अलाउंस (एनपीए) देती है। यह तनख्वाह का 25 फीसदी उन्हें हर महीने मिलता है। इसके बावजूद राजकीय मेडिकल कॉलेज देहरादून के बड़ी संख्या में डॉक्टर निजी अस्पतालों में जाकर प्रैक्टिस कर रहे हैं। जिसका बोझ यहां आ रहे मरीजों की जेब पर पड़ रहा है। नियमानुसार मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है। बावजूद इसके कई डॉक्टर एक ओर तो सरकार से एनपीए का पैसा ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट प्रैक्टिस करके भी कर रहे हैं। यहां पहुंच रहा मरीज खुद को ठगा महसूस कर रहा है। क्योंकि जो उपचार, ऑपरेशन या सुविधा यहां न होने की बात बताई जाती है। निजी अस्पताल में वही डॉक्टर मरीज को यह सुविधा दे रहा होता है।
एनपीए के बाद प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकते। इसे लेकर नियम साफ है। पूर्व में शासन ने इस संबंध में सभी से एफीडेविट मांग थे। जिसकी रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। यदि किसी के खिलाफ शिकायत आती है तो शासन के निर्देशानुसार कार्रवाई की जाएगी।
डॉक्टरो के पास अपने एजेंट भेजते हैं
दून अस्पताल अन्य डॉक्टरो की ओपीडी में उनके पास भी अपने एजेंट भेजकर मरीज भेजने एवं जांच लिखने का देता ऑफर। कमीशनबाजी में मरीज बेहाल। ऐसे में कैसे होगा मरीजों का भला। सरकार लाखों रुपये इको मशीन पर अभी खर्च कर चुकी। फिर भी डॉक्टर निजी लैब में बुलाता मरीज जांच को। ये डॉक्टर साहब पहले कोरोना पीरियड में कोरोनेशन में बैठते थे। वहां भी इक्का दुक्का मरीज देखते थे। वहां फोर्टिस के चक्कर में दाल नहीं गलने पर यहां दून में जॉइन कर लिया ताकि अपनी निजी प्रेक्टिस चला सके। एक पद से यहां से भी पहले रिजाइन किया फिर दूसरे पद पर जॉइन। इससे लगता है कि इनकी सेटिंग अस्पताल से लेकर उच्चाधिकारियों तक है।