देहरादून – राजधानी देहरादून के सबसे बड़े जिला अस्पताल दून अस्पताल की इमरजेंसी में एक बार फिर से डॉक्टर और कर्मचारियों द्वारा की गई बड़ी लापरवाही सामने आई है । बता दें कि दून अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग महिला जो की मानसिक रूप से बीमार थी वह अचानक दून अस्पताल की इमरजेंसी वार्ड से गायब हो गई । वहीं जब महिला को अस्पताल भर्ती करवाने वाले लोग महिला को मिलने के लिए अस्पताल पहुंचे तो उन्हें महिला से मिलने ही नहीं दिया गया और बाद में अस्पताल प्रशासन मामले से बचता दिखाई दिया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बीमार महिला को कराया था अस्पताल में भर्ती —
दरअसल गायब हुई महिला क्लेमेंटाउन में गुरुद्वारे के पास रहती थी । बीते रविवार देर रात भाजपा नेता महेश पांडेय और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष ने बीमार महिला को इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती कराया था। जिसके बाद उसे कोरोनेशन अस्पताल में भिजवाया गया । कोरोनेशन अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे दून अस्पताल के लिए रेफर कर दिया, रविवार रात करीब 11:00 बजे महिला को दून अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन जब सोमवार की सुबह सामाजिक कार्यकर्ता अस्पताल में महिला का हालचाल लेने पहुंचे तो महिला उन्हें वहां नहीं मिली ।
सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से मिली जानकारी —
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब वह अस्पताल पहुंचे तो उन्हें बीमार महिला बिस्तर पर नहीं मिली और साथ ही कोई जिम्मेदार व्यक्ति भी नहीं मिला जो इस बात का जवाब दे सके कि कैसे एक बीमार महिला अस्पताल से यूं अचानक गायब हो गई । कार्यकर्ताओं ने बताया कि वे लगातार अस्पताल के चक्कर काटते रहे लेकिन अस्पताल प्रशासन लापरवाही बरतता नजर आया ।
मामले में इमरजेंसी वार्ड के प्रभारी ने कही ये बात–
इमरजेंसी वार्ड परकभारी प्रभारी डॉ धनंजय डोभाल ने इस मामले में जानकारी देते हुए बताया कि इमरजेंसी में महिला को ईएमओ एवं ऑन कॉल डॉक्टर ने देखा उसके हाथ में घाव था । डॉक्टर धनंजय का कहना है कि सुबह करीब 9:30 बजे जब महिला अपने बिस्तर पर नहीं थी तब इस बात की सूचना पुलिस को दे दी गई थी ।
मामले में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही आई सामने —-
ध्यान देने वाली बात यह है कि महिला के यूं अचानक इमरजेंसी में से गायब हो जाने के बाद भी ईएमओं ने इस बात की जानकारी इमरजेंसी प्रभारी या एमएस को नहीं दी । सामाजिक कार्यकर्ताओं और भाजपा नेताओं के इस मामले में दखल देने से ही अस्पताल प्रशासन हरकत में आया लेकिन सोचने वाली बात यह है कि अगर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा अस्पताल के यू चक्कर ना काटे जाते और इस मामले में दखल ना दी जाती तो क्या एक बुजुर्ग महिला के यूं अचानक गायब होने की सूचना मीडिया या लोगों तक पहुंच पाती, या फिर अस्पताल प्रशासन इस मुद्दे को भी दस्तावेजों में दबा देता। सवाल काफी हैं लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।